बुधवार, 7 नवंबर 2018

कब बदलेगा भारत का भाग्य
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माता लक्ष्मी के मन मे अजीब सी हलचल थी, भारत के हालात देख कर कुछ आश्चर्यचकित तथा परेशान सी थी, जिस उत्साह के साथ वो भारत भूमि पर यहां की जनता की हालत देखने आयी थी वो पूरी तरह से दुख और क्षोभ में बदल गया था, चार साल पहले नारद मुनि ने भारत भ्रमण कर यहां के नये शासक के बारे में बताया था कि किस तरह वो जनता के अपार प्यार और समर्थन से सत्ता में आया था पूरा देश सुखद आश्चर्य में था। जिस तरह के लुभावने वादे उसने भारत की जनता से किये थे उससे भारत की जनता विशेष रूप से बहुसंख्यक हिन्दू समुदाय में आजादी के बाद पहली बार यह आशा बंधी थी कि यह नया शाशक जरूर ऐसा कुछ करेगा जिससे उनका मान सन्मान बढ़ाएगा।कुछ ऐसा तो करेगा जो केवल उनके लिए होगा, क्योंकि अब तक तो भारत की जनता यही समझती आयी थी कि सभी सरकारें केवल अल्पसंख्यक समुदाय के लिये ही सबकुछ कर रही है, जिसमे भी केवल मुस्लिमों,ईसाई को ही विशेष महत्व देती है ऐसे अल्पसंख्यक समुदाय जो हिन्दू धर्म से वास्ता रखते हैं जैसे जैन सिख जैसे समुदाय जो वास्तव में अल्पसंख्यक है उनकी भावनाओं, उनके अधिकारों से किसी भी सरकार का अबतक कोई मतलब नहीं रहा था,वोटों के लालची नेता और पार्टियां मुस्लिमों, ईसाईयों के एकमुश्त वोट के लिये बहुसंख्यक हिन्दू समुदाय की भावनाओं, उनके अधिकारों,उनके मान सन्मान से हमेशा खिलवाड़ करती रही है, उनका अपमान करती रही है,
भारत के नये शाशक के बारे में जैसे समाचार नारद मुनि से माता लक्ष्मी की मिले थे, माता लक्ष्मी को यह पक्का भरोसा था कि जिन भगवान राम के लंका विजय के उपरांत अयोध्या आगमन के उपलक्ष्य में दिवाली मनाई जाती है,जिसमे मुख्य रूप से उनकी ही पूजा की जाती है उन भगवान श्रीराम जन्मभूमि अयोध्या में भगवान राम के भव्य मंदिर के निर्माण में अब तक कि सरकारों ने मुस्लिम परस्ती के कारण जो बाधाएं खड़ी कर रखी थी नये शाशक ने वो सभी बाधाएं दूर कर दी होगी, तथा भगवान राम की जन्मस्थान पर मंदिर निर्माण शुरू हो गया होगा, तथा वो भी भगवान राम के वास्तविक जन्मस्थान के मंदिर में प्रभु राम वास्तविक में विष्णु दर्शन करेंगी।
माता लक्ष्मी को यह भी आशा थी कि नये शाशक ने हिंदुओं की पवित्र तथा मां के समकक्ष गंगा नदी को पूरी तरह साफ करवा का गंगा मां का पुराना गौरव फिर से ला दिया होगा, माता जानती थी कि गंगा किनारे के सबसे पावन तीर्थस्थल वाराणसी की जनता ने ही भरपूर प्यार तथा समर्थन देकर नये शाशक को सत्ता के शिर्ष पर बैठाया था। माता लक्ष्मी की हार्दिक इच्छा थी कि साफ सुथरी पवित्र गंगा की देवतुल्य आरती में वो भी शामिल हो अपनी मनोकामना पूरी करेगी।
माता लक्ष्मी को इसबात का भी पूरा भरोसा था कि सभी देवी देवताओं को अपने शरीर मे वास करने का स्थान देने वाली गोमाता की हत्या भारत मे बढ़ती जा रही थी, नये शाशक ने हिन्दू जनता की भावनाओं को सन्मान देते हुवे गोहत्या रोकने का कानून बना दिया होगा, माता लक्ष्मी भी गोमाता को हत्या के डर से भयभीत नही, निडर व खुशी से दमकते चेहरे में देखना चाहती थी।

माता लक्ष्मी जब स्वर्ग लोक से भारत भ्रमण के लिये निकली थी तब उनके मन मे चार वर्ष पहले नारद मुनि के भारत के नये शाशक के बारे सुनाये संस्मरण ही चल रहे थे।क्योंकि नारद जी देवताओं के अन्य कार्यों के कारण भारत भूमि का दर्शन करने नही आ पाये थे, परंतु उन्होंने माता लक्ष्मी को भरोसा दिया था कि जितना उन्होंने चुनाव प्रचार के दौरान नये शाशक के देश की जनता को आश्वस्त किया था उस बात के अनुसार अवश्य ही भारत मे शानदार सुधार हुये होंगे।
माता लक्ष्मी का देव विमान अदृश्य रूप से महाभारत कालीन इंद्रप्रस्थ यानी वर्तमान में भारत देश की राजधानी दिल्ली में उतरा,भारत भूमि के दर्शन की मधुर कल्पनाओं में खोई देवी लक्ष्मी को परिचारिकाओं ने जगाया, देवी ने अपने दैवीय वस्त्रों को ठीक किया और अपने देवविमान के द्वार पर पहुंची परंतु जैसे ही देवी ने बाहर कदम रखा वातावरण के जहरीली हवा के एक झोंके ने देवी के नाक में प्रवेश किया,देवी का सर चकराने लगा,शरीर मे अजीब सी झनझनाहट होने लगी,देवी पर बेहोसी सी छाने लगी, सभी परिचारिकाएँ तथा विमान चालक घबराने लगे, वो भी बाहर निकल नही पा रहे थे, इंद्रप्रस्थ की हवा में इतना जहर कहाँ से आया वो समझ नही पा रहे थे।परिचारिकाओं ने विमान में सुगंधित हवा का अतिरिक्त प्रवाह प्रारम्भ किया,जिससे देवी धीरे धीरे सामान्य होने लगी, अब समस्या थी कि बाहर कैसे निकला जाये तथा हवा के जहरीली होने के कारण तथा भारत की स्थिति की सम्पूर्ण जानकारी मालूम कि जाये। सांस रोक कर कुछ समय सामान्य रह सकने वाले परिचारक बाहर निकले तो देखा बहुत से लोग मुंह पर कुछ बांध कर आ जा रहे थे जानकारी से मालूम पड़ा धरती पर इस नये आविष्कार को मास्क कहते है, जिससे वातावरण की जहरीली हवा से राहत मिलती है और लोग इधर उधर आ जा सकते है, किसी तरह सभी के लिये मास्क की व्यवस्था कर देवी लक्ष्मी विमान से बाहर आयी,बाहर के वातावरण में हवा में धूल व जहरीली गैसों भरी थी, अपनी दिव्य दृष्टि से माता लक्ष्मी ने देखा भारत की जनसंख्या में अभूतपूर्व वृद्धि हुई है,अपनी सुख सुविधा के लिये मनुष्यों ने कई तरह के आविष्कार किये है,उनके वाहनों से निकलने वाले धुंए, वातावरण को ठंडा करने की मशीनों, अन्य साधनों से निकलने वाली जहरीली गैसों से वातावरण प्रदूषित हुवा है, किसान अपनी फसल की कटाई कर बचे अवशेषों की खेतों में ही जलाता है उस धुंए से वातावरण जहरीला हो गया है, लेकिन नये शाशक ने पिछले चार वर्षों में भी इसका कोई समाधान नही निकाला है, बल्कि इसके समाधान के लिए कोई विचार करने का सोचा भी नही है, शायद उनको यह कोई समस्या लगी ही नही हो।
देवी लक्ष्मी ने अपनी दिव्य दृष्टि से पता लगाया कि सत्ता में आने के पहले नये शाशक व उनकी पार्टी के लोग भगवान राम की कसमें खाते थे कि वो आते ही उनकी जन्मभूमि पर उनका भव्य मंदिर बनाने की दिशा में कार्य करेंगे परंतु सत्ता पाते ही मंदिर बनाने की बात को पूरी तरह से भूला दिया, मंदिर बनाने की बात तो छोड़ो नये शाशक ने इसके समाधान की कोई पहल ही नही की,कभी कोई विचार ही नही किया, मंदिर मंदिर घूमने वाले नए शाशक ने कभी भगवान राम की जन्मभूमि स्थल पर जाने का सोचा तक नही, यह उनका न सिर्फ भगवान राम बल्कि करोड़ों भक्तों के साथ बहुत बड़ा धोखा था।

पवित्र गंगा की साफ स्वच्छ अविरल बहती धारा को देखने की माता लक्ष्मी की इच्छा पर मानो गंगा का गंदगी से भरा प्रदूषित पानी गिर गया, गंगा माता के पुत्र होने की बड़ी बड़ी डींगे हांकने वाले नए शासक ने न केवल अपनी ही मां के साथ बल्कि उनके करोड़ो अन्य पुत्रो के साथ बड़ा विश्वासघात किया, इतने वर्षों के बाद सिर्फ़ बातें बनाने के अलावा सफाई की दिशा में कोई काम नही हुवा,
माता लक्ष्मी की दिव्य दृष्टि एक समय भारत का स्वर्ग कहे जाने वाले राज्य काश्मीर पर पड़ी जहां स्वतंत्रता से पहले हिंदू राजा था तथा राजाओं तथा सामान्य जनों में पूजनीय पंडितो का निवास था,जिनको स्वतंत्रता के पश्चात की सरकारों ने अपनी हिंदू विरोधी तथा मुस्लिम परस्त नीतिओ के कारण कश्मीर से मार काट के भागने को मजबूर कर दिया तत्कालीन मुस्लिम परस्त भारत की सरकार इन निर्मम हत्याओं पर आंख मूंद कर बैठी रही तथा अपनी ही जन्म भूमि को छोड़कर कश्मीरी पंडितों को देश के दूसरे भागों में शरणार्थी बनाना पड़ा, उन पंडितों को बहुत आशा तथा भरोसा था कि यह नया शासक जो हिन्दू हृदय सम्राट का चोगा पहन कर हिंदू हितों की बात करते हुये सत्ता में आया था उनको जरूर अपनी जन्मभूमि में फिर से बसाने की राह बनायेगा, परंतु नये शासक ने तो उन काश्मीरी पंडितो की पीठ के छुरा घोंपते हुये अपनी सत्ता लोलुपता के लिए पंडितों के घर वापसी के विषय पर तो आंखे मुंद ली ओर पंडितों की बेदखली के लिये जिम्मेदार देश तोड़ने व देश विरोधी  मानसिकता के लोगों के साथ सरकार में सहयोगी बन गये, दुश्मन देश के तथा अन्य आतंकी संगठनों के हाथों की कठपुतली बने अलगाववादीयो को हरतरह की सरकारी सुविधा तथा सुरक्षा देने पर करोड़ों रुपए खर्च करते रहे तथा भारतीय सेना की कार्यवाही  तथा सैनिकों की मौत पर भी केवल बेशर्मी से कड़ी निंदा तक सीमित रहे और सैनिकों पर पत्थर फेंकने वालो को छोडते रहे।देश के शिक्षा केंद्रों में देशद्रोह के नारे लगते रहे, देश तोड़क आतंकी समर्थक लोग पनप रहे है परंतु नये शासक आंखे मुंदे बैठे है,

माता को अपार दुख हुवा जब उन्होंने अपनी दिव्य दृष्टि से देखा नये शासक ने  बहुसंख्यक हिन्दू जनता की माता समान पूज्य गाय की हत्या रोकने की मांग पर पूरी तरह कान ओर आंखे मूंद ली थी,गो हत्यारो ओर तस्करों पर कोई बात नही पर अगर दःखी हिन्दू अगर अपनी गाय माता को कटने से बचाने गो हत्यारों से संघर्ष करते तो उन गो प्रेमियों को गुंडा जरूर बताया.
माता लक्ष्मी की दिव्य दृष्टि में पिछले चार वर्षों का घटनाक्रम चलचित्र की तरह आने लगा, नये शासक ने भृस्टाचार मिटाने ओर देश की जनता का जो धन पुराने शासकों ओर भृस्टाचारी नेताओं,अधिकारियों बड़े व्यापारियों ने लूट कर देश के बाहर के दूसरे देशों में जमा किया था, भारत मे अभी उस धन की काला धन कहा जाता को वापस लाने के बड़े बड़े वादे किये थे, सत्ता में आते ही वो सब वादों पर चुप्पी साध ली,तथा आंखे कान बंद कर बेसुध पड़े थे, न तो कोई काला धन आ पाया था भृस्टाचार और रिश्वत खोरी तो उल्टी बढ़ गयी थी, हालात तो यह हो गयी की काले धन वाले, भ्रस्टाचारी, देशद्रोही, आतंकी समर्थक बुद्धिजीवी, देश तोड़क मानसिकता के लोग अपने पर लगे हर आरोपों पर उल्टे नयी सरकार के कर्ताओं को खुली चुनोती देते है कि सरकार उनकी, पुलिस उनकी बडी से बडी जांच एजेंसियां उनके पास है तो फिर उनके पास दम है सबूत है तो उनपर कार्यवाही करके दिखाए, उन्हें जेल में डाल कर दिखाये उन्हें सजा क्यों नही दिलाते।

 माता लक्ष्मी ने अपनी अंतर दृष्टि से चिंतन किया कि अगर वर्तमान शासक जनता की तथा बहुसंख्यक हिंदू समाज की आशाओं तथा विश्वास की तरफ से चुपी साधे है तो कौन है जो उनकी सुनवाई कर सकता है परंतु वर्तमान शासक के विरोधी लोगों में तो ओर भी भयावह स्थिति थी, वहां तो तमाम ऐसे लोगों का जमावड़ा था जिन्होने अपने शाशन के दौरान जम कर देश के संसाधनों को लूटा था तथा अपनी कई कई पीढ़ियों तक भी समाप्त नही हो इतना अकूत धन देश मे तथा विदेशो में जमा कर दिया था, भारत की बहुसंख्यक हिन्दू जनता का जम कर शोषण किया था अल्पसंख्यक मुस्लिम तथा ईसाई समुदाय को खुश रखना ही उनका एकमात्र कार्य रह गया था, इसके लिए हिन्दू समुदाय का अपमान, उनकी परंपरा तथा सांस्कृति का जम कर अनादर किया था, जब हिन्दू समाज ने अपने भगवान श्रीराम की जन्मभूमि पर सदियों पूर्व बने मंदिर को तोड़ कर आततायी मुगलों द्वारा बनाई मस्जिद को ढहा दिया था उस श्रीराम जन्मभूमि स्थान पर फिर से मस्जिद बनाने का विचार रखते थे। कभी श्रीराम के अस्तित्व को ही नकारते थे, देश की सबसे पुरानी पार्टी के जो बीतते समय के साथ साथ पारिवारिक पार्टी बनगई थी के नए अध्यक्ष को सत्ता तक पहुंचाने की जबरदस्त होड़ के चलते उनकी पार्टी के नेता तथा दूसरी पार्टी के नेता भी अनर्गल प्रलाप, बेहूदे आरोप ओर निम्नस्तरीय आचरण से देश का माहौल खराब करने में लगे थे, परिवारिक पार्टी के अध्यक्ष पद पर जबरदस्ती कब्जा किये नये अध्यक्ष अपने अपरिपक्व आचरण, उटपटांग हरकतों तथा बिना सबूतों के लगाए जाने वाले अनर्गल आरोपों के कारण गंभीर नेता से मसखरे ज्यादा लगने लगे थे,  वो ख़ुद तथा उनके साथी नेता किसी भी तरह से सत्ता हथियाने के एकमात्र कार्य को करने के उतावले पन में भारत के वीर तथा समर्पित सेना पर भी कीचड़ उछालने, उनकेलिए हथियारों की खरीद में अड़ंगे लगाने, देशद्रोही ताकतों के साथ खड़े होकर अपने ही देश को अपमानित करने, दुश्मन देश की तारीफ करने तथा बहुसंख्यक हिन्दू समाज को हर तरह से अपमानित करने में लगे है, जहां उनके नेता जो पहले कभी जीवन मे मंदिर नही गये थे अपनी पार्टी के मुस्लिमों की पार्टी के रूप में बन चुकी पहचान तथा लगें दाग को मिटाने मंदिर मंदिर दर्शन करने का पाखंड कर रहे थे वहीं उनकी ही पार्टी के नेता हिन्दुओ को आतंकी, तथा सबसे बुरा साबित करने की होड़ में जोर शोर से लगे थे।
उनकी सहयोगी अन्य पार्टियो के नेता भी जो नये शासक के बढ़ते प्रभाव के कारण सत्ता से बेदखल हो चुके थे वो सभी भी साथ मिलकर नये शासक के विरोध के दुष्प्रचार का जबरदस्त अभियान चलाए हुये थे, क्योंकि नया शाशक भले ही हिन्दुओ की अपेक्षाओं पर ज्यादा खरे नही उतरे थे परंतु अपनी ईमानदारी से बाकी सभी के भृस्टाचार पर अंकुश लगा दिया था जो भृस्टाचार के सबसे बड़े पेड़ जो देश की सबसे पुरानी पार्टी के रूप में विशाल फलदाई वृक्ष के रूप में विकसित हो चुका था, उसके सहारे उसपर रेंगते कीड़ों, या सांपो के रूप में भृस्टाचार रूपी फल खाकर ख़ुद को,अपने कुनबे को तथा अपनी पार्टी को मालामाल कर रहे थे, परंतु नये शासक के उच्च स्तर के भृस्टाचार, कमीशनखोरी बड़े हथियार अन्य खरीददारी में दलाली खाने पर अंकुश लगाने से भृस्टाचार का यह पेड़ सूखने लगे था तथा इस पर आश्रित सभी लोग के भी कमाई के सारे साधन बंद होने से अथाह धन आने के रास्ते बंद हो गये थे, अतः सभी चोर चोर मौसेरे भाई देश को तबाह करने की कीमत पर भी नये शासक को बदनाम कर उसे सत्ता से हटाना चाहते थे।
माता लक्ष्मी यह निर्णय नही कर पा रही थी कि किसके साथ भारत का विशेष रूप से हिन्दू जनता का भाग्य सुरक्षित है, एक तरफ तो वर्तमान शासक है जो ईमानदार है, कर्मठ है, योग्य है परंतु धर्मनिरपेक्ष कहलाने या साम्प्रदायिक होने का ठप्पा न लगे इसके लियबहुसंख्यक हिन्दू समाज से विश्वासघात कर रहा था, भगवान श्रीराम के जन्मस्थान पर मंदिर बनाने, मां गंगा को साफ सुथरी बनाने, गोहत्या पर प्रतिबंध लगाने, काश्मीरी पंडितों की घर वापसी जैसे कार्यो पर आंख मूंदकर, कान बंदकर बैठा है, तथा दूसरी तरफ देश के संसाधनों को लूटने वाले, हर चीज में कमीशन या दलाली खाने वाले हिन्दुओ की भावनाओं, उनकी संस्कृति, रीति रिवाजों का मजाक बनाने वाले, चोर लुटेरों, भृस्टाचारियो, देशद्रोहीयो के साथियो की फ़ौज है।

माता लक्ष्मी ने समझ लिया अभी भी भारत देश का यहां के मूल निवासी हिन्दुओ का भाग्य अभी भी नही बदला है, भाग्य अभी भी नही चमका है, कई शताब्दियों से दुर्भाग्य की काली छाया भारत के भाग्य से हटी नही है और ना जाने कितने वर्ष, कितने दशक या कितनी शताब्दियाँ भारत की विश्व गुरु या सोने की चिड़िया जैसी ख्याति पुनः मिलने में लग जायेगी।

माता लक्ष्मी एकबार फिर किसी निर्णय की स्थिति में नहीं थी, माता को भारत की स्थिति में सुधार का कोई रास्ता सूझ ही नही रहा था,परंतु माता लक्ष्मी के मन मे यह चिंतन अवश्य था कि भले ही नया शासक हिन्दुओ की भावनाओं के साथ वो न्याय नही कर पाया था जिसकी उनसे भारत की  जनता को अपेक्षा थी परंतु वो देश की प्रगति की दिशा में पूरी ईमानदारी से लगा हुवा था इसीलिए देवी लक्ष्मी की यही चाह थी कि वर्तमान शासक देश की सत्ता में कुछ समय और बना रहे, फिर भी अपने अनिर्णय की स्थिति में तथा भारत को अपने भाग्य भरोसे छोड़ स्वर्ग की ओर प्रस्थान कर गयी।